श्रीकांत वर्मा (18 सितम्बर 1931- 25 मई 1986) का जन्म बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ। वे गीतकार, कथाकार तथा समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं। ये राजनीति से भी जुड़े थे तथा राज्यसभा के सदस्य रहे। 1957 में प्रकाशित 'भटका मेघ', 1967 में प्रकाशित 'मायादर्पण' और 'दिनारम्भ', 1973 में प्रकाशित 'जलसाघर' और 1984 में प्रकाशित 'मगध' इनकी काव्य-कृतियाँ हैं। 'मगध' काव्य संग्रह के लिए 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित हुये।
हम पृथ्वी की शुरुआत से स्त्री हैं
सरकारें बदलती रहीं
तख़्त पलटते रहे
हम स्त्री रहे
विचारक आए
विचारक गए
हम स्त्री रहे
सैंकड़ों सावन आए
अपने साथ हर दूषित चीज़ बहा...
अनुवाद: पंखुरी सिन्हा
युद्ध के बाद ज़िन्दगी
कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं
बग़ीचे की झाड़ियाँ
हिलाती हैं अपनी दाढ़ियाँ
बहस करते दार्शनिकों की तरह
जबकि पैशन फ़्रूट की नारंगी
मुठ्ठियाँ जा...
जयशंकर प्रसाद के जीवन पर केंद्रित उपन्यास 'कंथा' का साहित्यिक-जगत में व्यापक स्वागत हुआ है। लेखक श्यामबिहारी श्यामल से उपन्यास की रचना-प्रकिया, प्रसाद जी...