वो पिता की सूरत को सवालों में याद करता है
उसकी माँ जवाबों में याद करती है
बेटा, याद की भी याद होती है
पहली रात की भी रात होती है

क्षणभर की ख़ामोशी के बाद
माँ कहती है
पिता, तुम्हें चलना सिखा रहे थे
मैं तुझे हँसना सिखा रही थी
वो अचानक चले गए
तुम्हारी अँगुली छोड़कर
मुझे रोता छोड़कर

वो रेडियो के शौकीन थे
संगीत बजता था मेरे जीवन में
तुम खेलते थे
हमारे सूने आँगन में
अचानक मैं हँसना भूल गयी

बेटा, भूलना जीवन की सर्वोत्तम आदत है
इसलिए हम जीना सीख लेते है
रोना, जीवन की पहली और अंतिम क्रिया,
इसलिए हम हँसना सीख लेते है!

(दोस्त के पिता को जीवन को समर्पित)

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