जब तक देखा नहीं
तब तक
कहाँ था आकाश?
कल देखूँगा नहीं
तब कहाँ होगा आकाश
आकाश है यहाँ
यहाँ मैं देख रहा हूँ

मेरे देख लेने से
वह आकाश हुआ
हुई एक विशालकाय
तनी हुई नीली चादर
गुज़रकर मेरी आँखों से
इतना बड़ा दृश्य
सहसा आकाश हुआ

कहाँ होगा आकाश
नहीं देख रहा हूँगा
तब होगा लहलहाता जंगल
दरकता हुआ रेगिस्तान
मेरे द्वारा देखे जाने से
होगा आकाश
उड़ेगा आकाश की ओर
पक्षियों का झुण्ड!

नरेन्द्र जैन की कविता 'थोड़ी बहुत मृत्यु'

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