‘Ye Jo Zindagi Hai’, a poem by Mahima Shree

ये जो ज़िन्दगी है न ‘फुल ऑफ ड्रामा’
थोड़ा-सा नमकीन, थोड़ा-सा मीठा
थोड़ा-सा खट्टा, थोड़ा-सा तीखा
पर ड्रामा में किरदार चाहिए
जैसे पानी को बहने के लिए धार चाहिए
दिल के कोने में कई कैनवस छुपाकर रखे हैं मैंने
ख़ाली कैनवसों ने आज आवाज़ लगायी है
थोड़ा गुलाबी, थोड़ा जामुनी
थोड़ा हरा, थोड़ा नीला
बासंती रंगो में केसरिया बिन्दी
चलो मिलकर रंग भरते हैं उनमें
सुनो
एहसासों के सतरंगी समुन्दर भी देखे हैं मैंने
कई चमकीली सीपियाँ, कुछ मखमली फूल
जादुई मछली, इन्द्रधनुषी पत्थर
चलो मिलकर चुनते हैं।
आँखों में आकाश,
हथेली में चाँद,
आँचल में सितारे,
माथे पर सूरज कैसे उगता है,
तुम चाहो अगर तो
कभी साथ मिलकर देखते हैं।

महिमा श्री
रिसर्च स्कॉलर, गेस्ट फैकल्टी- मास कॉम्युनिकेशन , कॉलेज ऑफ कॉमर्स, पटना स्वतंत्र पत्रकारिता व लेखन कविता,गज़ल, लधुकथा, समीक्षा, आलेख प्रकाशन- प्रथम कविता संग्रह- अकुलाहटें मेरे मन की, 2015, अंजुमन प्रकाशन, कई सांझा संकलनों में कविता, गज़ल और लधुकथा शामिल युद्धरत आदमी, द कोर , सदानीरा त्रैमासिक, आधुनिक साहित्य, विश्वगाथा, अटूट बंधन, सप्तपर्णी, सुसंभाव्य, किस्सा-कोताह, खुशबु मेरे देश की, अटूट बंधन, नेशनल दुनिया, हिंदुस्तान, निर्झर टाइम्स आदि पत्र- पत्रिकाओं में, बिजुका ब्लॉग, पुरवाई, ओपनबुक्स ऑनलाइन, लधुकथा डॉट कॉम , शब्दव्यंजना आदि में कविताएं प्रकाशित .अहा जिंदगी (साप्ताहिक), आधी आबादी( हिंदी मासिक पत्रिका) में आलेख प्रकाशित .पटना के स्थानीय यू ट्यूब चैनैल TheFullVolume.com के लिए बिहार के गणमान्य साहित्यकारों का साक्षात्कार