‘Ye Kaisa Detention Center’, a poem by Akshiptika Rattan

उसे मेरे लिए
डिटेंशन सेण्टर बनाने की ज़रूरत नहीं थी
वो अलग कारीगर था
वो जानता था क़ैद करने का हुनर
मेरे सीने के अन्दर घुस गया था वो
सीने में घुस मुस्कराया था
ढूँढ लिया था उसने मेरे लिए डिटेंशन सेण्टर
ठाठ से कुर्सी पर बैठ
उसने नज़र फेरी थी चारों तरफ़
मेरे हर सपने को ज़ब्त कर
उसने मेरा परिचय माँगा था
मेरे नाम के हर काग़ज़ को जला
उसने मेरी पहचान को नकारा था
मेरे हर विचार को नज़रबन्द कर
उसने दस्तूर दहशत का चलाया था
ख़ुद से मुझे बेदख़ल कर
उसने साम्राज्य अपना उसारा था
सुना था मैंने
डिटेंशन सेण्टर किसी इमारत को कहते हैं
उसने इसे मेरे सीने में उगाया था
मुझे मेरे अपने वजूद पर सन्देह करवाने वाला
यह कौन घुसपैठिया था
जिसने मुझे ख़ुद को मेरा डिटेंशन सेंटर बनाया था…

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