कविता: रफ़ता-रफ़ता यूँ ही किसी रोज़ मर न जाओ (‘You Start Dying Slowly’)
कवयित्री: मार्था मेदेरुस (Martha Medeiros)

अनुवाद: असना बद्र

तो रफ़ता-रफ़ता यूँ ही किसी रोज़ मर न जाओ
अगर सफ़र तुम नहीं करोगे
किताबे हस्ती नहीं पढ़ोगे
न कोई नग़मा हयात का तुम कभी सुनोगे
न ख़ुद को पहचान ही सकोगे
तो रफ़ता-रफ़ता यूँ ही किसी रोज़ मर न जाओ

अगर ख़ुदी अपनी मार दोगे
मदद को आगे नहीं बढ़ोगे
तो रफ़ता-रफ़ता यूँ ही किसी रोज़ मर न जाओ

तराशकर अपनी ख़ू की शह पर
हमेशा इक राह से गुजरकर
न रोज़ो शब को बदल सकोगे
न रंग तस्वीर में भरोगे
न अजनबियत भुला के हर शख़्स से मिलोगे
तो रफ़ता-रफ़ता यूँ ही किसी रोज़ मर न जाओ

अगर तुम्हारा जुनून भी ना-गुजीर होगा
तुम्हारे जज़्बात का तलातुम लकीर का इक फ़क़ीर होगा
तुम्हारी आँखों की रोशनी माँद हो न जाए
तुम्हारा दिल डूबता हुआ चाँद हो न जाए
तो रफ़ता-रफ़ता यूँ ही किसी रोज़ मर न जाओ

जो आफ़ते नागहां के डर से
जो बेवजह ख़ौफ़ के असर से
तुम अपने ख़्वाबों का जब ताक़ुब नहीं करोगे
और इक दफ़ा अपनी ज़िन्दगी में
बदन की सरहद से बाहर आकर नहीं चलोगे
तो रफ़ता-रफ़ता यूँ ही किसी रोज़ मर न जाओ…

***

(कुछ वेबसाइट्स पर यह कविता पाब्लो नेरूदा के नाम से प्रकाशित है लेकिन इस आर्टिकल के अनुसार यह कविता मार्था मेदेरुस की है)

ज़ेनेप हातुन की कविता 'मैं'

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