‘Zaroori Hai Prem Mein Hona’, a poem by Amandeep Gujral
सब कुछ छोड़कर चले जाना चुपचाप
बुद्ध होने के लिए ज़रूरी है क्या?
तुम एक काम करना
तुम जाकर आना
आने से पहले कर आना गंगा स्नान
बहा आना मन की अनगिनत कुण्ठाएँ
या फिर
किसी मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे की ड्योढ़ी पर
बैठ सुनना मन की
विसर्जित कर आना सारी पीड़ाएँ
किसी बहती नदी में
लौट आना
पर्वतों के धीर-गम्भीर, अनुपम सौंदर्य के साथ
झरनों का मधुर संगीत
मिट्टी की पाक ख़ुशबू लिए
संसार के नियम उलटकर
लौट आना
मुमुक्षु होने के लिए ज़रूरी है प्रेम में होना
मेरे पास आ निष्कपट मन से करना प्रेम
और बुद्ध हो जाना
यक़ीन मानो
इस भौतिकवादी युग में
सांसारिक जीवन जीते हुए बुद्ध हो जाना
अप्रतिम सयोंग है।
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