ज़ीस्त ये कैसी जंजाल में है
चलना इसे हर हाल में है

माज़ी के पीछे चलने वाले
हाल तेरा किस हाल में है

जवाब छोड़ तो आये हो ख़त में
पर कोई अब भी उसी सवाल में है

राह चली और मोड़ मुड़ गई
पर इक मोड़ अब भी मलाल में है

हर शब शमअ सा जलता है कोई
मगर वही तन्हाई साल दर साल में है

चर्चे थे जिसके शहर में कभी
सुना है वो हुस्न भी अब जवाल में है।

भारत भूषण
An adult who never grew.