आबाद रहेंगे वीराने, शादाब रहेंगी ज़ंजीरें
जब तक दीवाने ज़िंदा हैं, फूलेंगी-फलेंगी ज़ंजीरें
आज़ादी का दरवाज़ा भी ख़ुद ही खोलेंगी ज़ंजीरें
टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगी जब हद से बढ़ेंगी ज़ंजीरें
जब सब के लब सिल जाएँगे, हाथों से क़लम छिन जाएँगे
बातिल से लोहा लेने का एलान करेंगी ज़ंजीरें
अंधों-बहरों की नगरी में यूँ कौन तवज्जोह करता है
माहौल सुनेगा-देखेगा जिस वक़्त बजेंगी ज़ंजीरें
जो ज़ंजीरों से बाहर हैं, आज़ाद उन्हें भी मत समझो
जब हाथ कटेंगे ज़ालिम के, उस वक़्त कटेंगी ज़ंजीरें!