‘Aam Janta’, a poem by Mohit Mishra
जब प्रभुत्व सम्पन्न दैवीय वर्ग-
महिषासुर से त्रस्त थे,
आम जनता भुख से त्रस्त थी।
जब राजर्षि और देव-
रावण के आतंक में थे,
आम जनता के समक्ष-
रोटी का प्रश्न सर्वाधिक प्रासंगिक था।
जब कुरूराज से धर्मराज,
सिंहासन के लिए जूझ रहे थे,
आम जनता की आँखों में-
अतृप्त क्षुधा की बेबसी थी।
क्योंकि कोई महिषासुर,
कोई रावण या कोई दुर्योधन,
प्रभुत्व सम्पन्न दैवीय वर्ग के सिवा –
आम जनता को नहीं सताते,
और सच ये भी है-
कि आम जनता के लिए-
अवतार नहीं आते।
हाँ शक्तिशाली वर्ग को-
प्रश्रय देते नेताओं का सर्वाधिक जयगान,
आम जनता ही करती है,
क्योंकि वह मूर्ख है।