मैंने प्रेम का पीछा छोड़ दिया
क्यूँकि मुझे अनुभूतियों की ज़्यादा परवाह थी
सुख और दुःख से ज़्यादा
मुझे वक़्त की परमसत्ता पर विश्वास रहा
मैं शादियों और मैय्यतों में बराबरी से शामिल हुआ
इंसानों से ज़्यादा नफ़रत मैंने
चींटियों और मच्छरों से की
दोनों ने मुझे इंसानों से ज़्यादा तंगाया
सिगरेट छोड़ने की सबसे ज़्यादा क़समें
सिगरेट की दुकान पर खायीं
मैंने कड़ी गरमी में भी बारिश का कभी स्वागत नहीं किया
मुझे मानसून के ख़ाली जाने का भय था
दुबले दिखने की चाहत में
आधी-आधी सांसें लेकर जीता रहा
मेरा अस्त व्यस्त औघड़ इतिहास
काम वाली बाइयों को कभी माफ़ नहीं कर पाया
नहाना जीवन की सबसे जागृत क्रिया रही
उससे टुकड़ों-टुकड़ों में बुद्धत्व मिला
कुछ शहर मुझे सिर्फ़ भीड़ बढ़ाते नज़र आए
उनके अस्तित्व पर मैंने सवाल किए
अपनी कला पर मैंने हमेशा शक किया
ऐसा करना सही न हो उसके लिए कुछ नहीं किया
लाइट का जलते रहना
मुझे अंधेरे से ज़्यादा चुभता रहा
मुझे चुप रहना पसंद था
गफ़लत में जाने क्या बकवास करता रहा
जिन लाइनों को लिखने से पुरस्कार मिलते हों
वैसी लाइनें मुझसे नहीं लिखते बनीं।