‘Bandish’, a poem by Vishesh Chandra Naman
जिधर जाना नहीं था
उधर से कोई आता दिखता था
जिधर देखना नहीं था
एक आवाज़ तो वहीं से आयी थी
जिधर सुनना नहीं था
एक स्पर्श टटोलता था मुझको
जिसे छूने पर बंदिश थी
चाहना की ख़ुशबू बिखेरी थी उसने
रुकावटों के इन उपाय में
मैंने जाने को देखा
देखने को सुना
सुनने को छुआ
छूने को चाहा
अधिक इस भीड़ में
मैं थोड़ा कम रहा।
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