बुलंदी से उतारे जा चुके हैं
ज़मीं पर ला के मारे जा चुके हैं

दिखाए बीच दरिया कौन रस्ता
फ़लक ख़ाली है, तारे जा चुके हैं

मआनी क्या रहे ख़ुद्दारियों के
कि दामन तो पसारे जा चुके हैं

ये पूरा सच है तुम मानो न मानो
कि अच्छे दिन तुम्हारे जा चुके हैं

भनक तक भी न पहुँची उसकी हम तक
हमारे दिन गुज़ारे जा चुके हैं

अब इस अंधे कुएँ को बंद कर दो
कई बच्चे हमारे जा चुके हैं!

ज़फ़र गोरखपुरी
(5 मई 1935 - 29 जुलाई 2017) प्रसिद्ध शायर।