क्यों मुझे कोई शख्स नज़र नहीं आता अब इस शहर में
बस चलती फिरती सी कहानियाँ दिखाई देती हैं दिन के हर इक पहर में,
कुछ वो जो आँखों से मुस्कुरा देती हैं तो कुछ होंठों की हंसी के पीछे ग़मों को अपने छुपा लेती हैं।
कुछ चुप चुप सी रहती हैं, तो कुछ बेबात ही बातों की चौपाल बैठा देती है।
ना जाने क्यों पर अब मुझे कोई शख्स नज़र नहीं आता इस शहर में
बस चलती फिरती सी कहानियाँ दिखाई देती हैं दिन के हर इक पहर में,
कुछ दिसंबर के जाड़े में आग के अलाव सी गर्माती हुई,
कुछ इस सर्दी का बेइंतहां लुत्फ उठाती हुई।
कुछ धुंधले इस दिसंबर में धुंधलाती हुई कहानियां
कुछ इस धुंध में निखर कर आती हुई कहानियां
कुछ यादों के दिसंबर को नईं उम्मीदों संग भूलाती हुई।
तो कुछ नए साल के जश्न में डूब नए फलसफे सुनाती हुई।
ना जाने क्यों पर अब इस शहर में मुझे कोई शख्स नज़र नहीं आता
बस नज़र आतीं हैं तो कुछ चलती फिरती सी कहानियाँ।
कुछ जिन्हें लोगों ने नकार दिया है, बिना जाने ही बेकार कहा है,
कुछ वो जो महँगी बड़ी, ऊपर से चमक रही, पर अंदर से जब देखा तो ये तो मैली बड़ी है।
कुछ वो जो हमारी समझ पर पूर्ण विराम है, तो कुछ ऐसी भी हैं कहानियां जो दिल को देती सुकूँ और आराम है।