‘Jab Main Stree Tha’, Hindi Kavita by Rahul Boyal
अनेक बार लेती है
मुझमें हताशा जन्म
मैंने कभी हताशा को जन्म नहीं दिया
अनेक बार चिपटी है मुझसे
निराशा
मैंने कभी निराशा को नहीं थामा
मैंने छुआ, अनुभूत किया
और लाँघ दिया
उन सब अवरोधों को
जो उगे, उठे, चुभे
या उछलकर किरकिरी बने।
तुमने जितना ऐश्वर्य जिया
उसके प्रतिलोम
स्त्री ने उतनी ही त्रासदी भोगी
एक स्त्री में तुम्हें छप्पन व्यंजनों
और सैंकड़ों इत्रों की गंध आ सकती है
और तुम बहककर
भोगलावे का इंतज़ाम कर सकते हो
जबकि स्त्री तुम्हारे भीतर उड़ती हुई
श्वान गंध तक को नज़रअंदाज़ करती रहती है
कठिन है स्त्री होना
इस दौर में तो और भी कठिन
स्त्री देह होना कठिनतम से कठिनतर
पृथ्वी के जन्म से पहले ही
पृथु की पत्नी ने भोग ली यह विडम्बना
मैंने ये सब जाना
जब मैं स्त्री था।
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