‘Khamoshi’, a poem by Shyam Chandele
ख़ामोशी कितनी डरावनी होती है
धुप्प अँधेरी ख़ामोश रात में
ख़ामोशी कितनी ज़रूरी होती है
गैर ज़रूरी बहस में
ख़ामोशी कितनी उलझनें पैदा कर देती है
किसी उलझे सवाल को हल करते समय
जब आप किसी से कुछ पूछो और वो ख़ामोश रहे
ख़ामोशी घातक होती है
जब ले रहा हो कोई हमारे बारे में निर्णय!