‘Kiran Ki Tarah Aati Hai Aurat’, a poem by Amar Dalpura
घर के बाहर
हरिजन बस्ती से
किरण की तरह
आती है औरत
मारती है झाड़ू
गाँव को रोशन करती है
झाड़ू और शब्दों से
सबसे करती है राम-राम
बेटा राम-राम
भाई राम-राम
बहण राम-राम
भाया राम-राम
मैं तब से सोचता हूँ कि
ये राम कौन है?
क्या इसका बेटा है?
जो करती है इतना प्रेम!
बासी रोटी की ख़ातिर
झूठन की ख़ातिर
मरे हुए पशुओं, खाल की ख़ातिर
मारती है झाड़ू
बहुत दिनों तक वो नहीं आयी
मैंने सोचा कि
राम नहीं आया
उसकी बहू आती
चुपचाप झाड़ू मारती
बासी रोटी लेकर चली जाती
एक दिन बिना झाड़ू के
सूरज लाल (रक्त) होकर उगा
घर की लीपी हुई भीत पर
अब बरसों गुजर गए राम को आए हुए
अचानक उसका बेटा आया
दस हज़ार की ख़ातिर
बोला नुक्ता करना है
जीजी (माँ) मर गयी
मैंने सोचा कि राम मर गया
जो जीवनभर घुस न सकी
राम के मंदिर में
वह चली गयी राम के पास…
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