‘Kiraye Ka Makan’, a poem by Avinash Mishra
एक कमरा और एक किचन
संडास तीन लोगों का मिलाकर कॉमन है
तीन हज़ार रुपया और दो हज़ार सिक्योरिटी
एक मध्यमवर्गीय परिवार का लड़का
शहर में एक किराये के मकान में
सिक्योर हो जाता है
दरअसल कुछ ख़्वाब थे
जो उसने अपने घर में देखे थे
ख्वाबों को वह किराये की मकान में ठहरा देता है
ख़्वाब ठहरे रह जाते हैं
किराया चलता जाता है
बाबू दफ़्तर जाने लगते हैं
ख़्वाब कमरे के कोने में चले जाते हैं
सिक्योर फ़्यूचर में एक इनसिक्योर ख़्वाब
किराया भरता रहता है!