कितना पानी उड़ा
समन्दर का
एक बूँद बनाने के लिए!
कलियों ने बसन्त की
राह तकते
कितने मौसम खोये!
किसने गिने
चकोर ने कितने चखे
आग के गोले
पेट की अगन बुझाने के लिए!
पपीहे ने
कितने नक्षत्रों को
स्वाति के लिए
बिना देखे ही विदा कर दिया!
और कौन जाने
कितने कहकहे
लगाये गए
इक आह छुपाने के लिए!
