प्रेम के असंख्य समुद्रों में
डूबी हुई लड़की
नहीं याद रखती अपने ज़ख़्म
जबकि जानती है
कि नमक कभी मलहम नहीं बनेगा।
हत्याओं से पटी पड़ी है पृथ्वी
हथियारों से अघाया हुआ आदमी
अब प्रयोगधर्मी होने में हो रहा है दक्ष
और नित नयी लड़की आज़मा रहा है।
पंछियों ने सुन्दर पंख फड़फड़ाये
और ताक में बैठे हुए शिकारी ने
दाग़ दिया छर्रा ऐसे हिस्से में
कि बस! इतना ही रहे घायल
कि उड़ न सके
लड़कियों पर यही तरकीबें
काम कर रही हैं इन दिनों
करुणा के अथाह सागर में
डूबी हुई लड़की
नहीं रखती याद अपने दुःख-दर्द
जबकि जानती है
उमंगों का कोई मौसम नहीं बनेगा
लड़की के भरोसे ने ही
बचाये रखा हुआ है दुनिया को
कि वह आज भी
अनजान लड़के के साथ चल देती है।