मनोहर श्याम जोशी के उद्धरण | Manohar Shyam Joshi Quotes
'क़िस्सा पौने चार यार' से:
“क़ायदे से यह कोशिश भी यहीं ख़त्म हो जानी चाहिए जो इस लेखक ने पत्रकार की हैसियत से साहित्य रचने की ख़ातिर शुरू की थी। शेष सब पाठक-पाठिकाओं की कल्पना पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि उनकी कल्पना किसके भरोसे पर छोड़ दें? क्या कितनी कल्पनाएँ उससे अर्थ से अनर्थ नहीं हो जाएगा? और अगर सब कुछ उनकी कल्पना था तो इतना भी क्यों लिखा? उनकी कल्पना फ़ुर्सत मिलने पर अपनी पसन्द की कोई कहानी अपने आप सोच लेती। तो क्या लेखक अपनी कल्पना से काम ले? लेकिन उससे तो इस शर्त का उल्लंघन होगा कि भोगा हुआ यथार्थ ही लिखा जाना है? और जहाँ तक नायिका का सवाल है, उसे मैं क़समिया तौर पर भोगे हुए यथार्थ में शामिल करने की स्थिति में नहीं हूँ। साहित्य की ख़ातिर उसे भोगे हुए यथार्थ की सीमा में लाऊँ?”
अन्य:
“प्यार होता है तो पहली ही नज़र में पूरी तरह हो जाता है। दूसरी नज़र में तो आलोचना हो सकती है, पुनर्विचार हो सकता है।”
“इस देश में कोई इतना अमीर नहीं कि फ़्री-फण्ड के माल को नहीं कर दे!”
“भूमिका की ही हम-आप खा रहे हैं, आगे तो किताब कोरी है।”
“लाठी चलायी नहीं जाती असली पॉलिटिक्स में! उठा ज़रूर ली जाती है कभी-कभी, और इस स्टाइल से कि साँप ससुरा ख़ुद इस्तीफ़ा देकर बिल में घुस जाए।”
“‘आदर्श’ यदि व्यवहारिक होता तो क्या ‘यथार्थ’ शब्द का स्कोप रहता भाषा में?”
“इकॉनमी दो स्तर पर चलती है— संकट-फंकट एक नम्बर की इकॉनमी में होता है, दो नम्बर की इकॉनमी फलती-फूलती रहती है भगवान की दया से।”
“जो भी देता है, ऊपर वाला देता है, इसलिए ही ‘ऊपर-वाली-आमदनी’ कही जाती है।”
“हमारे यहाँ संस्कृत का घोंटा लगाए पण्डित और मार्क्स का घोंटा लगाए तथाकथित क्रान्तिकारी दोनों को स्वीकृति प्राप्त है। यदि कोई लेखक सेक्स की, वेश्याओं की, समलैंगिकों की बात लिख दे तो उसे दोनों खेमे अस्वीकृत कर देंगे।”
“इस देश में आपको हर आदमी यही कहता मिलेगा कि दो दिन के लिए हमें पावर दी जाए, हम सब ठीक कर देंगे।”
“राजनीति में दो ही मार्ग हैं— एक सदाबहार रखता है, दूसरा सदा बाहर रखता है।”
“वे क्लीन दिखते रहें, इसके लिए ज़रूरी है कि धूल-धूसरित लोग उनके दाएँ-बाएँ खड़े हों फ़ोटो में। इमेज कॉन्ट्रास्ट से बनती है।”
“सफ़ाई-पसन्द देश के नागरिकों का सफ़ाई-पसन्द होने का इससे बड़ा क्या प्रमाण होगा कि वे झूठ तक साफ़-साफ़ बोलते हैं।”
“विज़िबिलिटी पुअर रखिएगा तो फ़ॉरगेट हो जाइएगा।”
“यह जो साहित्य है, वह नितान्त पढ़े-लिखे लोगों का गँवारपना है।”
“जब घटियापन का राज हो तो श्रेष्ठता के स्वप्न देखना राजद्रोह है।”
“आपने कहा कि नेता लोग लूट-खसोट न करें तो देश स्वर्ग बन जाए। तो कक्का पहले देश के लोगों से पूछ तो लो कि वो स्वर्गवासी होना चाहते हैं कि नहीं?”
“हर नेता फ़ुरसत के समय तीन में से एक जगह बैठा होता है इस देश में— पाख़ाने में, प्राइवेट में या पूजाघर में।”
“लॉ एंड ऑर्डर और मौसम पर किसी का बस नहीं!”
“फेरी लगाना मेहनत का काम है, और हेरा-फेरी में तो पसीने छूट जाते हैं।”