मोहब्बत में ये क्या मक़ाम आ रहे हैं
कि मंज़िल पे हैं और चले जा रहे हैं

ये कह-कहके हम दिल को बहला रहे हैं
वो अब चल चुके हैं, वो अब आ रहे हैं

वो अज़-ख़ुद ही नादिम हुए जा रहे हैं
ख़ुदा जाने क्या-क्या ख़याल आ रहे हैं

हमारे ही दिल से मज़े उनके पूछो
वो धोखे जो दानिस्ता हम खा रहे हैं

जफ़ा करने वालों को क्या हो गया है
वफ़ा करके भी हम तो शर्मा रहे हैं

वो आलम है अब यारो अग़्यार कैसे
हमीं अपने दुश्मन हुए जा रहे हैं

मिज़ाज-ए-गिरामी की हो ख़ैर या-रब
कई दिन से अक्सर वो याद आ रहे हैं

जिगर मुरादाबादी
जिगर मुरादाबादी, एक और नाम: अली सिकंदर (1890–1960), 20 वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध उर्दू कवि और उर्दू गजल के प्रमुख हस्ताक्षरों में से एक। उनकी अत्यधिक प्रशंसित कविता संग्रह "आतिश-ए-गुल" के लिए उन्हें 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।