‘Mujhe Nahi Pata’, a poem by Nirmal Gupt

सच में मुझे नहीं पता
इतिहास द्वारा खींची गयी रेखा के
किस ओर खड़ा हूँ मैं
अपने लिए जगह ढूँढता
बदहवास

मेरी ही तरह और भी हैं
जिनकी दूर की नज़र कमज़ोर है
उन सबको मेरा मशविरा है
(जो दरअस्ल ख़ुद को आश्वस्त करना है)
वे इतिहास को उठाकर
अपने सिर पर सजा लें
तब उसका जादू बोल उठेगा

हम सो पाएँगे
बड़े बाप के उस बेटे की तरह
जो चादर से मुँह ढाँपकर
बड़े चैन से सोता है
अपने वक़्त की दहलीज़ पर।

निर्मल गुप्त
बंगाल में जन्म ,रहना सहना उत्तर प्रदेश में . व्यंग्य लेखन भी .अब तक कविता की दो किताबें -मैं ज़रा जल्दी में हूँ और वक्त का अजायबघर छप चुकी हैं . तीन व्यंग्य लेखों के संकलन इस बहुरुपिया समय में,हैंगर में टंगा एंगर और बतकही का लोकतंत्र प्रकाशित. कुछ कहानियों और कविताओं का अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद . सम्पर्क : gupt.nirmal@gmail.com