‘Mujhe Nahi Pata’, a poem by Nirmal Gupt
सच में मुझे नहीं पता
इतिहास द्वारा खींची गयी रेखा के
किस ओर खड़ा हूँ मैं
अपने लिए जगह ढूँढता
बदहवास
मेरी ही तरह और भी हैं
जिनकी दूर की नज़र कमज़ोर है
उन सबको मेरा मशविरा है
(जो दरअस्ल ख़ुद को आश्वस्त करना है)
वे इतिहास को उठाकर
अपने सिर पर सजा लें
तब उसका जादू बोल उठेगा
हम सो पाएँगे
बड़े बाप के उस बेटे की तरह
जो चादर से मुँह ढाँपकर
बड़े चैन से सोता है
अपने वक़्त की दहलीज़ पर।