चलो अब ख़्वाब देखना छोड़ देते हैं
उस ख़ूबसूरत दुनिया के जिसे बनाने का
महज़ ख़्वाब भर इतना भारी है कि हमारे
कंधे झुककर किसी पुराने वृक्ष समान बन चुके हैं

वो वृक्ष अपने लम्बे से शरीर
पर लदा बड़ा सा सर झुकाए
हर रहगुज़र से यही इल्तिजा कर रहा है
कि उसे काट दिया जाए
क्योंकि उसकी मायूस टहनियाँ अब किसानों की
लाश का वज़न उठाने लायक नहीं रहीं

जिन पर उगे खुशबू का व्यापार करने वाले फूल
फलों में परिवर्तित होना भूल चुके हैं
और उसकी सुंदर काया अब उसकी दुर्बलता पर तंज़ कसने लगी है,
क्योंकि वो अब लोगों की भूख मिटाने लायक नहीं रहा

सांझ ढलते ही वृक्ष नींद बसर करना चाहता है
उसे अब रात भर जागने से डर लगता है
अक्सर, किसी लड़की के चीखने की आवाज़
उसकी नींद तोड़ देती है, पर गांव वाले इस बात
का विश्वास नहीं करते।
वो असमंजस में है, कि
लोग सचमुच बहरे हो चुके हैं
या अब वह लोगों को समझाने लायक नहीं रहा

वृक्ष लाचार है ,
कमज़ोर है, मौत के इंतज़ार में है
पर उसका ज़मीर अभी मरा नही है
वृक्ष ज़िंदा है!

हम जवान है ,
सक्षम हैं, मौत से दूर हैं
पर हमारा ज़मीर, मर चुका है
हम मृत हैं!