Poems: Gauri Tiwari
रंग
धरती और आसमान के बीच
रंगों का एक खेल है जीवन
पहली साँस के साथ
पहली आवाज़ के साथ
पहली बार खुली पलकों में
समा जाने वाली
सतरंगी किरन
आख़िरी साँस तक
रंग भरती रहती है
ज़िन्दगी के लम्हों में
अच्छाइयों के उजले
बुराइयों के रंग गहरे
सुख के चमकीले
दुःख के धुंधले से
ख़ुशियों के रंग धानी
उदासियों के नीले
सपनों के रंग सिंदूरी
उम्मीदों के पीले
हर अभाव का, हर प्रभाव का
एक अलग रंग है
हर संवेदना का, हर भाव का
एक अलग रंग है
उम्र ओढ़ती रहती है
अनगिनत रंगों की असंख्य परतें
धूप के इन्द्रधनुषी रंग एक दिन
आपस में उलझकर
अंधेरे के रंग में बदल जाते हैं
अमास की रात में
चाँद उगने जैसा अचरज था
इस स्याह सतह पर
किसी और रंग का उभरना
लेकिन मेरे मटमैले मन में
कुमुदनी से खिल उठे तुम
इसी तरह निर्मल निर्दोष
निश्छल बना रहे हमेशा इसलिए
सारे रंगों को धोकर छुआ है मैंने
रोशनी-सा उजला तुम्हारा प्रेम
तुम ऐसे ही बनाये रखना इसे
निर्दोष निश्छल निष्कलंक।
बीज कविता का
कविताओं के जीवन के लिए
चाहिए तपती रेत का ढेर
कि जब पानी की फुहार-सी गिरें
तो भाप-सी निकल पड़े आह
या चाहिए प्यासी मिट्टी
कि सोखते ही शब्दों की बूँदें
सोंधी ख़ुशबू-सी उठें सम्वेदनाएँ
या कोई दरार
कि जहाँ भरकर रह जाये भाव बरखा
और अंकुरित हो जाये बरसों से छिपा काव्य बीज
न जाने कितनी कविताएँ
बह जाती हैं व्यर्थ
मन के आइने से
और कुछ हठीली ठहर भी जाती हैं
सधी हुई बूँदों की तरह
काँच की सतह पर
अगले किसी पल बह जाने के इंतज़ार में
या फिर
काँच की सतह को मिट्टी कर देने की आस में!
चाहत
मैं चाहती हूँ
दिशाएँ रहें चुप और
सहेजे रहें सिर्फ़ तुम्हारी आवाज़
मैं चाहती हूँ
हवाएँ रहें शांत और
समेटे रहें सिर्फ़ तुम्हारी महक
मैं चाहती हूँ
बनी रहूँ अनछुई और
सजोये रहूँ सिर्फ़ तुम्हारा स्पर्श
मैं चाहती हूँ
ओढ़े रहूँ ख़्याल और
सजाती रहूँ सिर्फ़ तुम्हारे ख़्वाब
मैं नहीं चाहती
तुम्हारे अहसास से अलग सोचूँ कोई शब्द
तुम्हारा प्रेम लिखने के लिए भी।