माँ की भूख
यमुना की धार के किनारे
झोपड़ों में रह रहा बच्चा
धूल में सने हाथी को
राजा की तरह चला रहा है,
पतली-सी मुस्कान लिए
उसकी माँ
आँखों से भी पता नहीं लगने देती
कि कुछ खिलौने
पैसे से नहीं
माँ की भूख से
ख़रीदे जाते हैं।
चलती रेलगाड़ियों में
चलती रेलगाड़ियों में
खिड़की पर बैठे कुछ लड़के
गुज़रते जाते खेतों खलिहानों
से बतियाते,
उन निर्जीवों को सुनाते जाते हैं
अपनी अमर प्रेम कथा,
और ओस पड़ी खिड़कियों पर
उग आता है
प्रेमिकाओं का नाम
क्षण भर को।