प्रेम में ठगे हुए पुरुष
कहीं दूर गाँव या शहर में
ढूँढते हैं एक शांत कोना
जहाँ होता है मद्धम अलसाया हुआ अँधेरा
उदास पुरवाई को लिये हुए
और खोजते हैं अपनी पवित्रता को।
करते हैं वे अपने आप से बातें
सुनाते हैं अपनी दास्तां को दीवारों और पेड़ों को
ये दीवारें और पेड़
देते हैं उनको सहारा
जहाँ वे अपना और प्रेमिका का नाम लिखकर
हो जाते हैं उसके नाम के साथ अमर।
वे हर उस याद पर करते हैं कोशिश
पहरा लगाने की
जो रह-रहकर टकराती है दिल से
और बनाती है आँखों में
एक ख़ूबसूरत-सी तस्वीर
और होंठों पर दंतुरित मुस्कान।
वे जाते हैं उस स्थान पर
जहाँ पर वे दोनों प्रेमी पहली बार मिले
मध्यरात्रि में पूर्णिमा के दिन
और किया था वायदा प्रेम में रहने का ताउम्र
उस चाँद को साक्षी मानकर।
अब वे उस स्थान को करते हैं घोषित
खण्डहरों की जगह या कोई भूतहा चौराहा
और लिख देते हैं एक तख़्ती पर
उस स्थान के बारे में
“सावधान! प्रेम में दुर्घटना सम्भावित क्षेत्र
यहाँ दिल के चोरी होने और टूटने की
ज़िम्मेदारी हमारी नहीं है
अपना ख़्याल ख़ुद रखें।”
अब वे देखते हैं उस हाथ की रेखाओं को
जिन्हें देखकर किसी भविष्यवेत्ता ने कहा कि
तुम भाग्यशाली हो
अब वे रेखाएँ शायद मिट गई हैं या
आँखों की रोशनी
जो कमज़ोर हो गई है, से
नज़र आती हैं धुँधली।