“जीवन को बेहतर बनाने के लिए मुझे हमेशा गाँधी जैसे नायकों की ज़रूरत महसूस होती है। उन आइनों में हम अपने व्यक्तित्व पर पड़ी धूल को झाड़कर अपनी कमियों और ख़ामियों परख सकते हैं।”
पृष्ठभूमि में गूँजती ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम…’ की मधुर धुन और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच साल 1983 में अपनी फिल्म ‘गाँधी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक एवं सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म श्रेणी के आस्कर अवार्ड ग्रहण करते हुए रिचर्ड एटनबरो ने कहा था-
“सही मायनों में इस अवार्ड के ज़रिये आप ने गाँधी को सम्मानित किया है। उनके उस शांतिपथ को सम्मानित किया है, जिसपर चलकर लाखों लोगों ने अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त किया। मुझे लगता है कि गाँधी के पास दुनिया में सभी के लिए कुछ न कुछ संदेश था। उनके व्यक्तित्व की सबसे असाधारण बात भी यही है कि इतिहास बन जाने के बावजूद वह आज भी प्रेरणा का असीमित स्रोत हैं। गाँधी के बारे में सोचते हुए मैं पोलैंड के राष्ट्रवादी नेता लैक वलेसा की इस बात से पूरा इत्तिफ़ाक़ रखता हूँ कि मानवीय गरिमा और शांति पाने का एक ही रास्ता है और वह है गाँधी का रास्ता। गाँधी ने कहा था कि हमें समस्याओं से पहले उन तरीक़ों के बारे में सोचना चाहिए जिनके द्वारा हम उन्हें सुलझाना चाहते हैं। इस तौर पर अहिंसा एक बेहतर विकल्प है, जिसे अपनाने पर बेशक दुनिया की तस्वीर कुछ अलग होगी… यूँ भी बीसवीं शताब्दी में हम जिन तरीक़ों से मानवीय गरिमा को तलाश रहे हैं उससे अंतत: हम एक-दूसरे का सिर उड़ा देंगे। इसीलिए हमें अपने तरीक़ों पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है।