‘Sambodhan’, poems by Shweta Rai

1

सम्बन्धों के महल दुमहलों में होते है सम्बोधन के कई झरोखे

कुछ काष्ठ निर्मित
कुछ लोहे से बने
तो कुछ पर लगी होती हैं पारदर्शी जालियाँ

जिनसे भीतर आती है हवा पानी धूप…

2

किसी को पुकारना भी कला है

हँसते रोते चूमते बतियाते समय
किसी को दिए गए
हमारे सम्बोधन ही
रिश्तों में भरते हैं ऐसी गंध
जिसके तिलिस्म से निकलना नहीं होता है
सहज
सरल

3

आप से तुम तक की यात्रा में

जब आप की औपचारिकता
तुम पर ख़त्म होती है तो

दो दिलों के बीच बन चुका होता है
भावनात्मक पुल
जिसके नीचे बहती है
प्रेम की नदी…

4

हर आयु वय के लिए अलग-अलग होते हैं सम्बोधन

यदि तुम्हारी पुकार पर
आहत न हो किसी का मन
तो जान लेना

कि तुम जान गए हो सम्बोधन का गणित…

5

सम्बोधन का निश्चित होता है व्याकरण
जिससे पठनीय बनती है
सम्बन्धों की भाषा

हमारे उच्चारण तय करते हैं हमारी मानसिक स्थिति
और सामाजिक भी…

6

सम्बोधन सदैव प्रेमिल रखना

धूप में बदली छाँव तो
बारिश में बूँद कहना
कभी इंद्रधनुष भी कह देना
फूल, पक्षी, नदी, धान, सरसों पुकारते हुए

तुम देखना
समूची सृष्टि तुम्हारी दृष्टि में निखर जायेगी…

श्वेता राय
विज्ञान अध्यापिका | देवरिया, उत्तर प्रदेश | ईमेल- raishweta010@gmail.com