‘Shehar Ke Log’, a poem by Prita Arvind
खेत से चली हवा
हवा में मिला धुआँ
धुएँ से परेशान हैं
शहर के लोग
परेली जलाने वालों को
राष्ट्रद्रोही घोषित करने
पर आमादा हैं
शहर के लोग
गाँव से लाखों लोग
रोटी कमाने हर दिन
शहर आ जाते हैं
पार्क फ़ूटपाथ स्टेशन
कहीं भी डेरा जमा लेते हैं
न उठने-बैठने का शऊर
न अंग्रेज़ी-हिन्दी बोलने का तरीक़ा
झाड़ू पोंछा बर्तन कपड़ा धुलाई
ड्राइविंग सब कुछ
वे कर लेते हैं दिन-रात
फिर भी उन्हें आदमी नहीं समझते
शहर के लोग
जिन्हें अपनी ज़िन्दगी जीने के लिए
चाहिए शहर से हज़ारों कोस दूर
बहती नदी का पानी
वो पानी जिस पर
हक़ है गाँव का
उनके फ़्रिज और एयरकण्डीशनर
चलते हैं जिस बिजली से
वह पहाड़ों में लगे
हाइडल पावर स्टेशन से आती है
लेकिन यह भूल जाते हैं
शहर के लोग
गाँव और शहर के बीच की दूरी
जैसे-जैसे घटती जाती है
वहाँ रहने वालों के बीच का फ़ासला
बढ़ता ही जाता है
लेकिन जब तक उनकी
जीवन शैली रहती है बची
नहीं करते किसी की चिंता
शहर के लोग…