‘Shesh Kushal Hai’, a poem by Pratap Somvanshi
भइया की चिठ्ठी आयी है
घर भर की बातें लायी है
पहले लिखा तुम्हें प्यार है
और आगे भाभी बीमार है
छुटकी को अक्सर बुख़ार है
लिक्खी अम्मा की पुकार है
आँखें जैसी की तैसी हैं,
गठिया की हालत वैसी है
अब तो बेटे है ये लगता,
मौत ही जैसे अंतिम हल है
शेष कुशल है!
घर में पैसे चार नहीं हैं
मिलता कही उधार नहीं है
भाई जब से दिन बिगड़े हैं,
कोई नातेदार नहीं है
छोटे का तुम हाल न पूछो
मोटी कितनी खाल न पूछो
अरजी आज नयी दे आया,
और अगला इंटरव्यू कल है
शेष कुशल है!
बहना का संदेश आया है,
उसने फिर ये कहलाया है
सामान और नगदी की ख़ातिर,
सास-ससुर ने धमकाया है
कुछ न कुछ सहते रहते हैं,
ऐसे दिन कटते रहते हैं
ये सब छोड़ो अपनी लिखना,
बीत रहे कैसे छिन-पल हैं
शेष कुशल है!
बप्पा ख़ुद से जूझ रहे हैं,
कब आओगे पूछ रहे हैं
लिख दो ख़्याल रखे सेहत का,
मिनट-मिनट पर टोक रहे हैं
आख़िर में बस इतना कहना,
तुम घर की चिन्ता मत करना.
मजबूरी ढोने का हम में,
बाक़ी अब भी काफ़ी बल है
शेष कुशल है!
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