ब्रह्माण्ड के किसी एक छोर पर
मानव ने चुनी सभ्यताएँ,
मर्यादाएँ और विकास
और पहुँचा इनके चरम पर
ब्रह्माण्ड के किसी दूसरे छोर पर
स्त्रियों ने चुना केवल स्वयं से
प्रेम कर सकने का एकाधिकार,
वहाँ न तो स्त्री पूजी गयी
न भोगी गयी,
न देवी बनी, न दासी,
स्त्री रही केवल स्त्री
और तब से सभ्यताओं में
रहने वाली हर स्त्री का अन्तर्मन
कर रहा है एक अनवरत यात्रा
उस दूसरे छोर तक पहुँचने हेतु…