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Gaurav Bharti

गौरव भारती की कविताएँ – IV

Poetry by Gaurav Bharti क़ैद रूहें उनका क्या जो नहीं लौटते हैं घर कभी-कभार देह तो लौट भी जाती है मगर रूहें खटती रहती हैं मीलों में खदानों में बड़े-बड़े निर्माणाधीन मकानों में इस उम्मीद...
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