Tag: Dharmvir Bharti
थके हुए कलाकार से
सृजन की थकन भूल जा देवता
अभी तो पड़ी है धरा अधबनी!
अभी तो पलक में नहीं खिल सकी
नवल कल्पना की मधुर चाँदनी,
अभी अधखिली ज्योत्सना की...
धर्मवीर भारती – ‘गुनाहों का देवता’
धर्मवीर भारती के उपन्यास 'गुनाहों का देवता' से उद्धरण | Quotes from 'Gunahon Ka Devta', a novel by Dharmvir Bharti
"सचमुच लगता है कि प्रयाग...
क्या इनका कोई अर्थ नहीं
ये शामें, सब की सब शामें
जिनमें मैंने घबराकर तुमको याद किया
जिनमें प्यासी सीपी-सा भटका विकल हिया
जाने किस आने वाले की प्रत्याशा में
ये शामें
क्या इनका...
उदास तुम
तुम कितनी सुन्दर लगती हो
जब तुम हो जाती हो उदास!
ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खण्डहर के आसपास
मदभरी चाँदनी जगती हो!
मुँह पर ढँक लेती हो...