Tag: Girdhar Rathi
अभीष्ट
हमारी इच्छाएँ सरल हैं, जिनमें
जुड़ती चली जाती हैं कुछ और सरल
इच्छाएँ
हमें घर दो, घर दो, घर दो
हम कहते हैं बार-बार
अनमने मन से
हमें घर दो
सरकार...
स्वगत
वही—
जिसे भींच रहे हो मुट्ठी में
लेकिन जो टूट-बिखर जाता है बार-बार—
जीवन है।
कभी रेत और कभी बर्फ़
कभी आँच और कभी सुरसुरी की तरह
अँगुलियों के बीच...