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उसका बिस्तर
हम लोग अपनी व्यक्तिगत पसंद और सुविधा को भुलाकर, यहाँ तक कि कभी-कभी अपना पेट काटकर भी वह काम करते हैं जो समाज में हमारा एक बेहतर व्यक्तित्व स्थापित कर दे.. हमें उन मानदंडों के अनुसार बना दे जिसपर यह समाज एक व्यक्ति को तौलता है.. लेकिन यह कितना अर्थहीन और एक स्तर पर बचकाना भी है, मनोहर श्याम जोशी की यह कहानी हमें बताती है.. पढ़िए!
होली
पुरुष के लिए सही गलत की परिभाषा यही रही है कि जो वह करे, वह सही और जो उसे न करने दिया जाए, वह गलत.. और उसके लिए स्त्री ने केवल उसका कहा मानने के लिए ही जन्म लिया है.. ऐसे में स्त्री खुद्दार होने के बावजूद यदि आर्थिक रूप से अपने पति पर निर्भर हो तो उसकी स्थिति इस कहानी की 'करुणा' जैसी ही हो जाती है! पढ़िए सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानी 'होली'!
एक स्त्री के कारनामे
जब आप अपने पति से पूछती हैं कि क्या वो चाय पियेंगे? तो क्या उनका जवाब होता है?- 'पी लूँगा!'
या
जब आपकी पत्नी आपसे बातें करने के लिए कहती हैं तो क्या बात करनी है, क्या यह भी आप उन्हीं से पूछते हैं?
यदि हाँ, तो यह कहानी आपके लिए है! :)
#धो_डाला
नतीजा
"बेवकूफ बच्चियाँ नहीं जानतीं कि उनका फेल होना मात्र उनका फेल होना भर नहीं है, उनका फेल होना... उनके मोरचे का ढहना है... वे स्वयं को कहीं रोप नहीं पाएँगी तो अँकुआएँगी कैसे...?"
किसी इंसान को एक बुरे परिवेश या बुरी जगह से निकालकर उसके जीवन को सामान्यधारा में लाने की कोशिश करने के कदम तो उठ जाते हैं, लेकिन यदि उस इंसान में ही इच्छाशक्ति न हो तो वे कदम लड़खड़ा भी जल्दी ही जाते हैं.. समाज के लिए कार्य करने वालों में कितने धैर्य और आत्मबल की ज़रूरत होती है, यह कहानी बखूबी बताती है.. ज़रूर पढ़िए!
दोपहर का भोजन
क्या आपके घर की औरतें आपसे बात करने से डरती हैं? क्या वे हमेशा इस कोशिश में लगी रहती हैं कि घर के बाकी सदस्यों के बीच के घर्षण को किसी भी तरह दूर कर दें? आप उनके खाने में कमी निकालने में बिलकुल नहीं हिचकते, लेकिन वो आपकी आर्थिक या व्यावसायिक अक्षमता के लिए भी आपसे सवाल तक नहीं करतीं? यदि हाँ, तो एक बार यह कहानी ज़रूर पढ़िए!
रेल की रात
"किसी स्त्री को देखते ही अब मेरे हृदय में एक श्रद्धा-पूर्ण उत्सुकता का भाव जाग पड़ता है। ऐसा मालूम होने लगता है, जैसे अपने जीवन में पहले स्त्री को देखा भी न हो, अब पहली बार इस आनंददायिनी रहस्यमयी जाति के अस्तित्व का अनुभव मुझे हुआ हो।"
#सालगिरह #IlachandraJoshi
भेड़िये
"लोग कहते हैं, अकेला भेड़िया कायर होता है। यह झूठ है। भेड़िया कायर नहीं होता, अकेला भी वह सिर्फ चौकन्ना होता है। तुम कहते हो लोमड़ी चालाक होती है, तो तुम भेड़ियों को जानते ही नहीं।"
'भेड़िये' एक ऐसी कहानी है जिसे हिन्दी के साहित्यकारों ने एक लम्बे अरसे तक हिन्दी की मौलिक कहानी न मानकर, अंग्रेजी की किसी कहानी का अनुवाद माना! इस पूर्वाग्रह के पीछे एक कारण यह भी रहा कि भुवनेश्वर को अंग्रेजी साहित्य का अच्छा ज्ञान था! बाद में इसी कहानी को नयी कहानी की दिशा में पहली कहानी भी माना गया जिसने गाँव, कस्बों, शहरों और प्रेम के किस्सों से कहानी को बाहर निकाला.. घोर व्यक्तिवाद की निशानी यह कहानी लिखकर भुवनेश्वर हिन्दी साहित्य में हमेशा के लिए अमर हो गए... पढ़िए!
एक जीवी, एक रत्नी, एक सपना
'हाय री स्त्री, डूबने के लिए भी तैयार है, यदि तेरा प्रिय एक सागर हो!'
'फिर उस लड़की का भी वही अंजाम हुआ, जो उससे पहले कई और लड़कियों का हो चुका था और उसके बाद कई और लड़कियों का होना था। वह लड़की बम्बई पहुँचकर कला की मूर्ती नहीं, कला की कब्र बन गई, और मैं सोच रही थी, यह रत्नी.. यह रत्नी क्या बनेगी?'
ग्राम
'ग्राम' - जयशंकर प्रसाद
टन! टन! टन! स्टेशन पर घंटी बोली।
श्रावण-मास की संध्या भी कैसी मनोहारिणी होती है! मेघ-माला-विभूषित गगन की छाया सघन रसाल-कानन में...
आहुति
'आहुति' - प्रेमचंद
आनन्द ने गद्देदार कुर्सी पर बैठकर सिगार जलाते हुए कहा- आज विशम्भर ने कैसी हिमाकत की! इम्तहान करीब है और आप आज...
आज़ादी: एक पत्र
'Azadi : Ek Patr', Hindi Kahani by Bhuvaneshwar
वही मार्च का महीना फिर आ गया। आज शायद वही तारीख़ भी हो। पर मेरे लिखने का...
कहानी का प्लॉट
(In collaboration with Acharya Shivpoojan Sahay Smarak Nyas)
मैं कहानी-लेखक नहीं हूँ। कहानी लिखने-योग्य प्रतिभा भी मुझ में नहीं है। कहानी-लेखक को स्वभावतः कला-मर्मज्ञ होना...