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प्रेम का अपवर्तनांक

'Prem Ka Apavartnaank', a poem by Mukesh Kumar Sinha नज़रें सीधी रेखा में कर रही थीं गमन कुछ ऐसा जैसे घोड़े की नज़रों को रखा जाता हो...
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