Tag: Regressive

Man and monkey sitting

आदमी है बन्दर

'Aadmi Hai Bandar', a poem by Jitendra आदमी है बन्दर बाहर से जाने कैसा और जाने कैसा अन्दर! तरह-तरह से नाच रहा है आकाओं के आगे उछल-कूदकर दिखा रहा...
Fahmida Riaz

तुम बिल्कुल हम जैसे निकले

तुम बिल्‍कुल हम जैसे निकले अब तक कहाँ छिपे थे भाई वो मूरखता, वो घामड़पन जिसमें हमने सदी गँवायी आख़िर पहुँची द्वार तुम्‍हारे अरे बधाई, बहुत बधाई। प्रेत धर्म का...
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