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सहपाठी
"मोहित ने विपिन को बुला कर चाय लाने को कहा। इसके साथ उसे यह सोच कर राहत मिली कि केक या मिठाई न भी हो तो कोई ख़ास बात नहीं। इसके लिए बिस्कुट ही काफ़ी होगा।"
बीसवीं शताब्दी के सर्वोत्तम फिल्म निर्देशकों में से एक, सत्यजित राय की यह कहानी सहज ही बताती है कि सत्यजित इतने सफल क्यों रहे! जिस सत्य को हमारा स्वार्थ, आत्मकेंद्रित होने की प्रवृत्ति, अनदेखी या फिर बड़े वर्ग का लाइफस्टाइल झुठला देता है, वही सच एक छोटे से बच्चे के चेहरे का भेष लेकर सूरज की तरह हमारे सामने चमकने लगता है! ज़रूर पढ़िए यह कहानी 'सहपाठी'!