Tag: Save Jungle

Usha Dashora

मैंने कभी चिड़िया नहीं देखी

'Maine Kabhi Chidiya Nahi Dekhi', a poem by Usha Dashora अबकी बार जो आँख की पलक का बाल टूटे उल्टी मुठ्ठी पर रख माँगना विश कि तुम्हारे मोबाइल की...
Tree Branch, No Leaf, Autumn, Sad, Dry, Dead

विकास की क़ीमत

'Vikas Ki Qeemat', a poem by Rachana वो कह रहे हैं कि हम विकसित हो रहे हैं बढ़ रहे हैं आगे चढ़ रहे हैं सीढ़ियाँ सभ्यता की दिन...
Kashinath Singh

जंगलजातकम्

"हे भद्र, हमारे पूर्वजों और मनुष्यों का बड़ा ही अंतरंग संबंध रहा है। उनके लिए हम अपने पुष्प, अपने बीच छिपी सारी संपदा, कंद-मूल, फल, पशु-पक्षी सब कुछ निछावर कर चुके हैं और आज भी करने के लिए प्रस्तुत हैं। विश्वास करें, शुरू से ही कुछ ऐसा नाता रहा है कि हमें भी उनके बिना खास अच्छा नहीं लगता। जवाब में उन्होंने भी हमें भरपूर प्यार दिया है। लेकिन आप? ...हमें संदेह है कि आप मनुष्य हैं!"
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