Tag: Shalabh Shriram Singh
जीवन बचा है अभी
जीवन बचा है अभी
ज़मीन के भीतर नमी बरक़रार है
बरक़रार है पत्थर के भीतर आग
हरापन जड़ों के अन्दर साँस ले रहा है!
जीवन बचा है अभी
रोशनी...
प्यार
प्यार था
मुस्कान में, चुप्पी में
यहाँ तक कि खिड़की में भी प्यार था!
अंधेरे में काँपता
छाया की तरह धूप में
सावधान करता
राहों के ख़तरों से बार-बार
प्यार था।
झरता...
स्त्री का अपने अंदाज़ में आना
सुबह की ताज़ा हवा की तरह आती है एक स्त्री
आती है एक स्त्री आँधी की तरह
उमस और घुटन की तरह आती है एक स्त्री।
पत्ती...
जिस दिन
जिस दिन अच्छी कविता लिखोगे
अपनों से दूर हो जाओगे
जिस दिन अच्छी कविता लिखोगे
नौकरी से हाथ धो बैठोगे
जिस दिन अच्छी कविता लिखोगे
प्यार करने वाले हवा...
औरों की तरह नहीं
अपने पिता की तरह कैसे कर सकता हूँ प्यार मैं?
अपने भाई की तरह कैसे?
कैसे कर सकता हूँ प्यार अपने पुत्र की तरह?
मित्र की तरह...