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मिट्टी का दर्शन
आत्मा अमर और मिट्टी नश्वर
यह बिना देखे का दर्शन बिल्कुल झूठा है!
आत्मा की अमरता कब, किसने देखी!
मिट्टी को, किन्तु, सदैव हमने देखा।
मिट्टी में मानवता...
हक़ दो
फूल को हक़ दो—वह हवा को प्यार करे
ओस, धूप, रंगों से जितना भर सके, भरे
सिहरे, काँपे, उभरे
और कभी किसी एक अँखुए की आहट पर
पंखुड़ी-पंखुड़ी...
मिट्टी के साथ बदल जाते हैं, सौन्दर्य के मानक
शांत साधक जैसे नयनों में खिंची काजल की एक महीन लकीर, माथे पर खिलखिलाती बड़ी-सी टिकुली, लज्जा से आरक्त मुख और सद्यःस्नाता देह की...
मिट्टी
ताओयुआन एरपोर्ट से लगेज बैग लेकर
ज्यांगोंग रोड स्थित अपने नये ठिकाने पर आकर
सामान की जाँच करने पर मैंने पाया
सही सलामत बैग में रखे पहुँच गये...
हम माँ के बनाए मिट्टी के खिलौने थे
हम गाँव के बड़के घर की बेटियाँ थीं, ये हमने गाँव में ही सुना!
हम बाँस की तरह रोज़ बढ़ जाते, और ककड़ियों की तरह...
शायद मिट्टी मुझे फिर पुकारे
सुन
दरिया अपनी मुट्ठी खोल रहा है
सुन
कुछ पत्ते और पत्तों के साथ कुछ हवा उखड़ गई है
जंगल के पेड़ इरादे
ज़मीन को बोसा दे रहे हैं
चाहते...
एक टोकरी-भर मिट्टी
जमींदार ने बुढ़िया से उसकी झोपड़ी छीन ली तो बुढ़िया ने एक टोकरी भर मिट्टी के अलावा कुछ न चाहा, फिर भी जमींदार को बुढ़िया की झोपड़ी वापिस करनी पड़ी.. कैसे? पढ़िए माधवराव सप्रे की इस कहानी में!