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‘कविता में बनारस’ से कविताएँ
'कविता में बनारस' संग्रह में उन कविताओं को इकट्ठा किया गया है, जो अलग-अलग भाषाओं के कवियों ने अपने-अपने समय के बनारस को देख...
बनारस गली
बनारस की गालियाँ ऐसी हैं,
जैसे एक खूबसूरत स्त्री के बेफ़िक्री से खुले बाल।
कुछ सुनहरा रंग लिए हुए, कुछ काले सी
कुछ रेल की पटरियों सी...
मंदिर वाली गली
"अब दूर-दूर के यात्री अपना लिबास कहाँ छोड़ आएं, राय साहिब और उन बेचारों के चेहरे मुहरे जैसे हैं वैसे ही तो रहेंगे। बंगाली, महाराष्ट्री, गुजराती और मद्रासी अलग-अलग हैं तो अलग-अलग ही तो नज़र आएँगे। अपना-अपना रूप और रंग-ढंग घर में छोड़कर तो तीर्थ यात्रा पर आने से रहे।"