‘Uchhala Ja Raha Hai’,
by Chandrasen Virat
खींचकर मतलब निकाला जा रहा है
व्यर्थ ही प्रकरण उछाला जा रहा है
मूल मुद्दों से हटाकर ध्यान सबका
बहस में हर तथ्य टाला जा रहा है
सत्य पर परतें चढ़ाकर संभ्रमों की
झूठ के अनुरूप ढाला जा रहा है
पक्ष में निर्णय लगाने के लिये ही
कुर्सियों पर ज़ोर डाला जा रहा है
यह दुराग्रह देखिए बासी कढ़ी को
छोंक देकर फिर उबाला जा रहा है
दूसरे के दाग़ देखे जबकि ख़ुद के
पैर के नीचे पनाला जा रहा है
आदमी को पतित कर दे गुह्य मन में
वह घृणित संदेह पाला जा रहा है
जो गिरे हैं और उनको रौंद डाला
स्थापितों को ही सम्भाला जा रहा है
नाचघर निर्माण की परियोजना में
ध्वंस होने को शिवाला जा रहा है
रोशनी के स्त्रोत की चिन्ता करो तुम
आ रहा है तम, उजाला जा रहा है।
यह भी पढ़ें: ‘एक कबूतर चिट्ठी लेकर पहली-पहली बार उड़ा’