लता मंगेशकर, दुनिया के किसी भी गायक से ज़्यादा गाने वाली गायिका के रूप में प्रसिद्धि के शीर्ष पर, विराजमान होने के बावजूद, एक नितांत निजी इंसान हैं, जिन्होंने तड़क-भड़क और चकाचौंध से हमेशा ही दूरी बनाए रखी है। ‘अपने ख़ुद के शब्दों में… लता मंगेशकर’, लता मंगेशकर और नसरीन मुन्नी कबीर के बीच, दिलचस्प बातचीत (साक्षात्कार) की वृहद शृंखला है, जो भारत की सबसे ज़्यादा प्रतिभा-सम्पन्न गायिका के जीवन के तमाम पहलुओं से परिचय कराती है, जिनकी आवाज़ ने असंख्य लोगों के दिलों में अपनी जगह बनायी हुई है। प्रस्तुत है इसी किताब के अंत में दिए गए जावेद अख़्तर और गुलज़ार द्वारा लता मंगेशकर पर लिखे गए लेख।
जावेद अख़्तर, लता मंगेशकर के बारे में
1983 में, एचएमवी ने टॉकीज के 50 वर्ष पूरे होने पर एक शानदार कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें बहुत से गायकों के साथ, नूरजहाँ ने भी मंच पर प्रस्तुति दी। मुझे हिन्दी फ़िल्म संगीत के इतिहास का सिंहावलोकन लिखने के लिए बोला गया था, जिसे शबाना ने मंच से व्याख्यायित किया। लता मंगेशकर का विवरण देते हुए मैंने लिखा, “अगर आप सारे जहाँ की सुवास (ख़ुशबू) लेंगे, सम्पूर्ण चाँद की ज्योत्सना; और विश्व का सम्पूर्ण मधु; और इन सबको एक साथ रखेंगे, तब भी उनके जैसी आवाज़ को नहीं रचा जा सकता है।”
किसी भी कला के स्वरूप में, चाहे वो कविता हो, गायन हो या चित्रकारी, सबमें कुछ निश्चित घटक होते हैं: जन्मजात प्रतिभा, प्रखर शिल्प, जज़्बा और एक आकर्षण, जिसे परिभाषित नहीं किया जा सकता।
लता मंगेशकर के पास स्पष्ट तौर पर एक प्रतिभासम्पन्न आवाज़ है। यह ऐसे ही, साफ़ और स्पष्ट है जैसे, मोती या स्फटिक। यह कितना परिपूर्ण है। उसके बाद आता है शिल्प यानी गायकी का अंदाज़। निश्चित तौर पर हर गायक को सुर में गाना चाहिए, तो फिर लता जी के बारे में क्या विशेष है? भोपाल के एक शास्त्रीय संगीतज्ञ ने मुझे इसकी बेहतरीन परिभाषा बतायी कि इनका ‘सुर’ आख़िर अलग क्यों है! इस विद्वान ने बताया कि अगर आप बाल या एक तार का एक रेशा भी ले लेंगे, तो इनमें जो सबसे महीन है, उसका भी एक केंद्र बिंदु होगा। लता जी, इस महीन रेशे के केंद्र बिंदु में गाती हैं, जिसे ‘सुर’ कहते हैं।
जैसे एक कलाकार होने के नाते मेरा अनुभव यह है कि किसी शिल्प की प्रवीणता भी कलाकार के लिए संकटपूर्ण होती है। जितना ज़्यादा आपकी शिल्प पर पकड़ बनती जाएगी, उतने ज़्यादा आप आवेगहीन और यांत्रिक होते जाएँगे। यह आपको एक निरुत्साही इंसान में बदल सकता है। आपकी कला में अब अनुराग नहीं है, तो समझो वह तकनीक हो गई है। जब हम अपना जीवन शुरू करते हैं, तो हम में शिल्प से ज़्यादा जज़्बा होता है। मगर जब हम तकनीक में दक्षता हासिल करते हैं, तो जज़्बा खो देते हैं। यह बहुत ही विरल है कि कोई कलाकार जब दक्षता हासिल करता है तो वह अपना जज़्बा भी बनाए रखे, क्योंकि ये दोनों एक तरह से आपस में प्रतिवादी हैं: शिल्प जहाँ सम्पूर्ण नियंत्रण और जागरूकता है, वहीं जज़्बा पूरी तरह से विस्मृति है। आपको दोनों गुणों की ज़रूरत एक साथ होती है।
लता मंगेशकर के पास त्रुटिहीन शिल्प है, एक महान प्राकृतिक प्रतिभा और उन्होंने उस जज़्बे को नहीं खोया है। भावनाओं में गहरे तक विलीन होना, गाने के शब्दों की सम्वेदना का एहसास करना और फिर स्वर माधुर्य की भाव-दशा में जाना—यह प्रतिभा उसी व्यक्ति की हो सकती है, जिसे कविता की गहरी समझ हो, एक तेज़ दिमाग़ हो; और तीक्ष्ण बुद्धि हो।
अंतरिक्ष के पूरे नौ ग्रहों की कल्पना करिए, जिन्हें एक पंक्ति में रख दिया गया है। ये शायद, एक अरब वर्षों में होता होगा। मगर यह भारत के संगीत की दुनिया में हुआ; और इस कारक को ‘लता मंगेशकर’ कहते हैं।
गुलज़ार, लता मंगेशकर के बारे में
लता जी में, जो सबसे विशिष्ट है, वह है उत्कृष्ट अभिव्यक्ति। मुझे विश्वास है और भी बहुत-सी, बेहतरीन आवाज़े हैं, मगर सबमें उनके जैसे अभिव्यक्त करने का तरीक़ा नहीं है। जाल के गाने ‘चाँदनी रातें प्यार की बातें’ को ही लीजिए। वे जिस ढंग से ‘चाँदनी’ शब्द गाती हैं, ऐसा लगता है, असल में चाँदनी है। वह एकदम प्रामाणिक लगता है। ये सिनेमा के माध्यम के लिए बहुत बड़ा तोहफ़ा है। उनकी आवाज़ में आप निष्ठा, श्रद्धा और सच्चाई सुन सकते हैं, और मेरे लिए यही सबसे बड़े गुण हैं। साथ ही, आप कभी श्रम या तनाव नहीं सुनेंगे, चाहे वो गाना अपने उच्चतम या निचले सरगम में है, ऐसा सुनायी देता है, जैसे वो बिना किसी श्रम के गा रही हैं—वो कभी हाँफती नहीं हैं। ऐसे बहुत-से गायक हैं, जिनकी आवाज़ में आप तनाव या चेष्टा सुन सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि वो गायक अनुपयुक्त है, मगर यह एक विरल गुण है।
मैं इस बात से विश्वस्त हूँ कि हर कलाकार का अस्तित्व उसके काम में प्रत्यक्ष होता है, जिन्हें इस बारे में जानकारी है, वो कलाकार व्यक्तित्व की इन विशेषताओं को जानते हैं, कुछ नहीं भी जानते। उनके गायन में ऐसे कौन-से तत्व हैं, जो हमें उनके व्यक्तित्व की झलक दिखाते हैं। पहला वहाँ कोई मिथ्याभिमान नहीं है, वो वही हैं, जो वो दिखती हैं। ना उनके व्यक्तित्व में, न उनके अंदाज़ में कोई दिखावा है। उसी वजह से हमें उनके हर शब्द को, जो वो गाती हैं, उस पर विश्वास है। अगर वो चाँदनी रात के बारे में गाती हैं, तो चाँदनी रात है। उनकी मुस्कराहट भी प्रत्यक्ष है। आप उनकी मुस्कराहट की छाप उनके गानों में भी देख सकती हैं। निश्चित रूप से वो एक बहुत ही उदार इंसान हैं। वो मुक्तभाव से अर्पित करती हैं। वो मुक्तभाव से योगदान करती हैं और उनकी यह उदारता आप उनकी आवाज़ में महसूस कर सकती हैं।
मैं आपको एक कहानी बताता हूँ। मैंने ‘ग़ालिब’ के ऊपर एक शृंखला का निर्देशन किया था। एक कड़ी में, ग़ालिब के चौथे बेटे का देहांत हो जाता है। लता जी ने संयोग से उस कड़ी को देखा और तुरंत मुझे फ़ोन किया। उनकी आवाज़ भर्राई हुई थी। उन्होंने मुझसे पूछा, “क्यों हर कवि को इतना दर्द सहना पड़ता है? क्यों ग़ालिब को इतना कुछ सहना पड़ा?” उन्हें उस ग़ालिब के दुख के लिए हमदर्दी थी, जिन्हें गुज़रे 140 वर्ष बीत गए: शायद उनका अनुभव था। जो लोग कष्ट से विचलित नहीं होते, उन्हें कष्ट नहीं होता। सहन करना कलाकार के सम्वेदनशील होने की निशानी है। कलाकार जितना ज़्यादा सम्वेदनशील होता है, वो उतना ज़्यादा सहन करता है। मेरा विश्वास है यह रचनात्मकता का एक हिस्सा है। सहना एक मनोभाव है। मुझे नहीं लगता किसी ने बिना संताप के प्रेम किया होगा। यह ख़ूबसूरत एहसास है। आप प्यार भी करते हैं; और दर्द का एहसास भी।
हम लोग क़िस्मतवाले हैं कि हमने उनकी आवाज़ सुनी और उस दौर में रहे, जिसमें वे हैं। मुझे उनके लिए दुःख होता है, जो लता मंगेशकर की आवाज़ सुने बिना गुज़र गए।
'रफ़ी: वह आवाज़ जिसने करोड़ों लोगों को मंत्रमुग्ध किया'