अरे, अब ऐसी कविता लिखो
कि जिसमें छन्द घूमकर आए
घुमड़ता जाए देह में दर्द
कहीं पर एक बार ठहराए
कि जिसमें एक प्रतिज्ञा करूँ
वही दो बार शब्द बन जाए
बताऊँ बार-बार वह अर्थ
न भाषा अपने को दोहराए
अरे, अब ऐसी कविता लिखो
कि कोई मूड़ नहीं मटकाए
न कोई पुलक-पुलक रह जाए
न कोई बेमतलब अकुलाए
छन्द से जोड़ो अपना आप
कि कवि की व्यथा हृदय सह जाए
थामकर हँसना-रोना आज
उदासी होनी की कह जाए!
रघुवीर सहाय की कविता 'आत्महत्या के विरुद्ध'