औरतें
उपले हुआ करती हैं
जिन्हें
पहले से
निर्धारित बिटौरों में
समेटकर रखा जाता है,
ताकि वे ख़ुद
साल भर
सर्दी बरसात में भी
दुनिया की पेट की आग
बुझाने के चलते
धीमे-धीमे जल सकें
अपने ही घर की
चूल्हों की सीमा में,
और अन्त में उन्हें
फेंका जा सके
उन सब्ज़ियों के तले
जिन्हें पकाने के लिए
वे राख बनी थीं।
