बात अब हद से निकल चुकी
ये दुनिया कब की बदल चुकी
लग गया फिर से पुराना रोग
झुण्ड में रहने लगे हैं लोग
सभ्यता लाशों-सी गल चुकी
बात अब हद से निकल चुकी
ये दुनिया कब की बदल चुकी
मच गया शोर मातम का
मिला न ठौर गौतम का
बुद्ध ने आँखें हैं मूँद लीं
बुद्ध की नीयत बदल चुकी
बात अब हद से निकल चुकी
ये दुनिया कब की बदल चुकी
ताल, पोखर या नदी, कुआँ
रक्त है इनमें मिला हुआ
जंग से जिनको था फ़ायदा
जंग उनको भी निगल चुकी
बात अब हद से निकल चुकी
ये दुनिया कब की बदल चुकी
हाय मोहन की बाँसुरी
तान छेड़ो न आसुरी
ये पावन प्रेम की भूमि
बहुत अब भय से दहल चुकी
बात अब हद से निकल चुकी
ये दुनिया कब की बदल चुकी!