जब युद्ध की घोषणा हुई
तब हँसते हुए बच्चे
प्रार्थना बुदबुदाते बच्चे
फूल वाले पौधों को पानी दे रहे थे
बच्चों की प्रार्थनाओं के भार से डरी बन्दूक़ें
फूलों की पीठ पीछे जा छुपी
उनके पैरों ने उठने से मना कर दिया
बन्दूक़ों में फूल के बीज होने की ज़िद होने लगी
बन्दूक़ों की जिद थी उनकी देह पर भी फूटे मीठी गन्ध
बन्दूक़ों की ज़िद थी उनके माथे पर भी हो प्रार्थना वाले फूल
बन्दूक़ें फूल बन जाएँ
इस उम्मीद की मौत नहीं होनी चाहिए
क्योंकि अभी सींचने हैं बच्चों को
धरती के सारे फूल
क्योंकि अभी गानी है बच्चों को, धरती की सारी प्रार्थनाएँ।
'भाषा के कोई सरनेम नहीं होते'