पृथ्वी कब से छाप रही है
अपने अख़बार के हर दूसरे पन्ने पर
मनुष्यों का बेदख़लनामा
मेरा और मेरे पूर्वजों का नाम छपा था किसी एक दिन
और किसी और दिन छपने वाला है
मेरी आने वाली पीढ़ियों का नाम
तुम
जो माँ-माँ पुकार वक्ष पर चढ़ बैठे हो
और रख दी है विकास की खड़ग उसके कण्ठ पर
ऐसी मातृहंता प्रजाति को अपनी संतान नहीं मानती
पृथ्वी!